यूरोपीय कंपनियों का भारत आगमन

यूरोपीय कंपनियों का भारत आगमन

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भारत में यूरोपीय कंपनियां का आगमन व्यापार करने के उद्देश्य से हुआ लेकिन वह भारत की भव्यता से प्रभावित होकर धीरे धीरे घुसपैठ करने लगे और अपना साम्राज्य का विस्तार करने लगे। भारत में सबसे पहले पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा ने 1498 ई. में कालीकट के तट पर पहुंच कर भारत और यूरोप के बीच समुद्री मार्ग की खोज की थी । भारत में यूरोपीय कंपनियों के आगमन का सही क्रम है -
पुर्तगाली
डज
अंग्रेज
डेनिश
फ्रांसीसी

पुर्तगाली -
भारत में पहला पुर्तगाली तथा पहला यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा 90 दिनों की यात्रा करके अब्दुल मनीक नामक गुजराती पथ - प्रदर्शक की सहायता से 17 मई 1498 ई. में  भारत आया था। वह इस नय समुद्री मार्ग की खोज करके भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट बंदरगाह पर पहुंचा था  जहां पर उसका स्वागत हिन्दू शासक जुमोरिन ने किया। वास्कोडिगामा को पहले से व्यापार कर रहे अरबों का के विरोध का सामना करना पड़ा और 1499 ई. में वापस लौट गया। वह जिस माल को लेकर गया था विशेषकर काली मिर्च वह उसकी पूरी यात्रा की कीमत के 60 गुना अधिक दामों पर बिका।
सन् 1505 फ्रांसिस्को डी - अल्मीडा भारत में पहला पुर्तगाली गवर्नर बनकर आया और 1509 ई. तक रहा। इसके बाद 1509 ई. में अल्फ्रांसो द अल्बुकर्क को भारत का गवर्नर नियुक्त किया गया जिसने पुर्तगाली साम्राज्य का विस्तार किया। अल्बुकर्क ने 1510 ई. में बीजापुर के शासक यूसुफ आदिल शाह से गोवा जीत लिया तथा उसे प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बनाया। पुर्तगालियों ने अपनी पहली व्यापारिक कोठी कोचीन में 1503 ई. को खोलीं थी। 1538 ई. में निना-दा-कुन्हा गवर्नर बना उसने राजधानी को कोचीन से गोवा स्थानांतरित की । 1542 में मार्टिन अलफांसो डिसूजा गवर्नर बना तथा उसके साथ जेसुइट संत फ्रांसिस्को  जेवियर भारत आया।
1961 ई. में ब्रिटेन के युवराज चार्ल्स द्वितीय से पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन से विवाह हुआ जिसमें पुर्तगाली द्वारा बंबई अंग्रेजों को दहेज दे दिया गया।  भारत में पुर्तगाली द्वारा मध्य अमेरिका से आलू , तम्बाकू , मकई लाया गया था भारत में जहाज निर्माण एवं प्रिटिंग प्रेस का सूत्रपात करने में भी पुर्तगालियो का योगदान रहा।

डच -
डचों का आगमन भारत में पुर्तगालियो के बाद हुआ। डच पहली बार भारत में 1596 में आये थे। 1602 ई. में डच संसद के आदेश अनुसार डच ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना हुई।
डचों द्वारा भारत में पहली कोठी मसूलीपट्टनम में 1605 में  स्थापित की गई। इनके अन्य कारखाने पुलिकट, सूरत, विमिलिपट्टनम, कारीकल, चिनसुरा, पटना, नागापट्टनम आदि जगहों पर भी थी। 17 वी शताब्दी में डच महत्वपूर्ण व्यापारिक शक्ति के रूप में रहा वह भारत से नील, शोरा, सूती वस्त्र, रेशम, अफीम आदि महत्वपूर्ण वस्तुओं का निर्यात करते थे।
18 वी शताब्दी में डच शक्ति अंग्रेजों के सामने कमजोर पड़ने लगी । अंग्रेजों एवं डच के बीच 1759 ई. में बेदरा का युद्ध हुआ जिसमें डच शक्ति पूरी तरह ध्वस्त हो गई 1795 तक अंग्रेजों ने उन्हें भारत से बाहर निकाल दिया।

अंग्रेज -
यूरोप से आने वाली सभी व्यापारिक कंपनियों में अंग्रेज सबसे अधिक प्रभावशाली थे। इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम द्वारा 31 दिसंबर 1600 को ईस्ट इंडिया कम्पनी को अधिकार - पत्र प्रदान किया जिसके तहत वह 15 वर्षों तक भारत से व्यापार कर सकते थे।
1609 ई. में भारत में व्यापारिक कोठी खोलने के उद्देश्य से कैप्टन हॅाकिन्स मुगल बादशाह जहाँगीर के दरबार में गया था किन्तु प्रारंभ में उसे अनुमति नहीं मिली। स्पली का युद्ध में अंग्रेजों द्वारा पुर्तगाली को पराजित किये जाने पर जहाँगीर कारखाना लगाने के लिए राजी हो गया। 1615 ई. में जेम्स प्रथम ने सर टॅामस रो को अपना राजदूत बनाकर जहांगीर के दरबार में पहुंचाया । टॅामस रो का एकमात्र उद्देश्य था जहाँगीर से व्यापारिक संधि करना और विभिन्न भागों में व्यापारिक कोठी खोलना । अंग्रेजों द्वारा भारत में पहली कोठी ( फैक्ट्री ) सूरत में खोली गई थी एवं दक्षिण पश्चिम समुद्रतट पर पहली व्यापारिक कोठी 1611 को मसूलीपट्टनम में स्थापित की गई। पुर्तगालियो से दहेज में प्राप्त मुंबई को 1668 में चार्ल्स द्वितीय ने कम्पनी को 10 पौंड वार्षिक किराये पर दे दिया। 1698 ई. में सुतानती, कालीकट तथा गोविन्दपुर की जमींदारी अंग्रेजों ने 1200 रुपए में प्राप्त की  जो बाद में विकसित होकर कलकत्ता के रुप में उभरें जिसे फोर्ट विलियम कहा गया। 1700 ई. में फोर्ट विलियम का पहला अध्यक्ष सर चार्ल्स आयर बना। 1715 ई. में जॅान सर्मन ने मुगल सम्राट फर्रुखसियर दरबार एक मिशन के साथ गया जिससे उसने यह फरमान प्राप्त किया कि 3000 रुपए वार्षिक किराया के बदले बंगाल में निशुल्क व्यापार कर सकते हैं।

डेनिस -
डेनमार्क की डेनिस ईस्ट इंडिया कम्पनी 1616 ई. में स्थापित हुई। यह कम्पनी भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने में असफल रही और अन्ततः 1845 तक अपनी सारी संपत्ति अंग्रेजों को बेच कर चले गये। डेनिसों ने 1620 ई. में त्रोंकोबार ( तमिलनाडु  ) तथा 1676 ई. सेरामपुर ( बंगाल ) में अपनी कुछ फैक्टरी और बस्ती बसाईं थी जिसमें सेरामपुर प्रमुख थी।

फ्रांसीसी
फ्रांसीसी सम्राट लुई चौदहवें के मंत्री कोलबर्ट के प्रयासों से 1664 ई. में प्रथम फ्रेंच कम्पनी की स्थापना हुई इसे ' कम्पनें देस इण्डेस ओरियंटलेस ' कहा जाता था। 1668 ई. में फ्रैंको कैरो ने औरंगजेब से फरमान प्राप्त कर सूरत में पहला कारखाना खोला। फ्रांसीसी द्वारा दूसरी कोठी मसूलीपट्टनम में 1669 ई. में खोली गई। फ्रांसिस मार्टिन ने 1673 में वलिकोंडापुर के सूबेदार शेर खां से पुर्दुचरी गांव प्राप्त किया जिससे पांडिचेरी की नींव पड़ी। मार्टिन ने पांडिचेरी की स्थापना की थी और वह इसके पहले प्रमुख थे।
1674 ई. में बंगाल के सूबेदार शाइस्ता खां ने फ्रांसीसी को चंद्रनगर में कोठी निर्माण की अनुमति दी।
1742 के बाद डूप्ले का भारतीय राज्यों में हस्तक्षेप और फ्रांसीसी शक्तियों का विस्तार हुआ। जिसकी वजह से अंग्रेजों से उनका संघर्ष प्रारंभ हो गया इन दोनों शक्तियों के बीच तीन युद्ध हुए जो कर्नाटक युद्ध के नाम प्रसिद्ध हैं।
प्रथम कर्नाटक युद्ध 1746-48 ई. , द्वितीय कर्नाटक युद्ध 1749-54 ई. , तृतीय कर्नाटक युद्ध 1757-63 ई. ।
                 

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